अन्य नाम -
वस्ति शोथ , मूत्राशय प्रदाह , वस्ति की सूजन । ।
परिचय -
कभी किसी भी कारण से मूत्राशय के भीतर की श्लैष्मिक झिल्ली ( म्यूकस मेम्ब्रेन्स ) में प्रदाह ( इन्फ्लेमेशन ) हो जाता है तो उसे मूत्राशय प्रदाह , सिस्टाइटिस या ' इन्फ्ले मेशन ऑफ दि ब्लैडर ' कहते हैं । इसमें मूत्राशय में असहनीय दर्द होता है , बार - बार पेशाब की इच्छा होती है । । | Inflammation of the urinary bladder .
रोग के प्रमुख कारण -
• अधिक शीत ( ठंड ) लगने ।• मूत्र मार्ग का तंग होना ।
• मिर्ची इत्यादि तेज और तीक्ष्ण पदार्थ के अधिक मात्रा में खाने से । ।
• बाहरी चोट / आघात । ।
• मूत्राशय में पथरी अथवा सुजाक रोग । । ।
• कैथेटर डाल कर पेशाब कराने के समय मसाने ( पेट के अंदर व थैली जिसमें पेशाब जमा रहता है ) में चोट आने से । ।
• कैन्थरिस , कोपेवा आदि उत्तेजक औषधि अधिक दिनों तक सेवन करने से । ।
• विभिन्न प्रकार के वात रोग ( एक तरह का गठिया रोग ) । ।
• वृद्धावस्था में मसाने के कमजोर पड़ने से ।
• पैरालिसिस ( Paralysis ) । ।
• मूत्राशय , गुर्दे , आँत , मलाशय एवं गर्भाशय के दूसरे अंगों में संक्रमण ( Infection ) के फैल जाने से । । ।
• मूत्राशय के अर्बुद ( गाँठ ) । नर्वस रोग ।
रोग के प्रमुख लक्षण -
प्रमुख लक्षण -
• मूत्राशय के स्थान पर दर्द ।
• अकड़न ।
• भार का प्रतीत होना ।
• बार - बार पेशाब की इच्छा । ।
• मूत्र में जलन
• अंगों में शीत ( ठंड ) एवं कंपकंपी ।
• मूत्राशय के अर्बुद ( गाँठ ) । नर्वस रोग ।
नोट - गर्भावस्था में अधिकांश को मूत्राशय शोथ ( सूजन ) हो जाता है ।
रोग के प्रमुख लक्षण -
प्रमुख लक्षण -
• मूत्राशय के स्थान पर दर्द ।
• अकड़न ।
• भार का प्रतीत होना ।
• बार - बार पेशाब की इच्छा । ।
• मूत्र में जलन
• अंगों में शीत ( ठंड ) एवं कंपकंपी ।
• मूत्र में मिला हुआ अथवा अन्त में पूय ( Pus ) निकलता है ।
यह रोग 2 प्रकार का होता है -
• तीव्र मूत्राशय शोथ ( सूजन )( Acute Cystitis ) ।• चिरकारी मूत्राशय शोथ ( सूजन )( Chronic Cystitis ) ।
तीव्र मूत्राशय शोथ ( सूजन ) के लक्षण -
• पूय की मात्रा अधिक नहीं ,
• मूत्र के साथ रक्त की उपस्थिति । ।
• आरम्भ में मूत्र अम्लीय पर शीघ्र क्षारीय । ।
• मूत्र त्याग बार - बार एवं पीड़ा । ।
• ज्वर , आलस्य , तन्द्रा ( दुर्बलता ) , अरुचि आदि लक्षण साथ में ।
• मूत्र के साथ रक्त की उपस्थिति । ।
• आरम्भ में मूत्र अम्लीय पर शीघ्र क्षारीय । ।
• मूत्र त्याग बार - बार एवं पीड़ा । ।
• ज्वर , आलस्य , तन्द्रा ( दुर्बलता ) , अरुचि आदि लक्षण साथ में ।
चिरकारी मूत्राशय शोथ ( सूजन ) के लक्षण →
• पूय की मात्रा अधिक । ।
• मूत्र प्रारम्भ से ही क्षारीय ।
• अन्य लक्षण मृदु रूप में ।
• मूत्र प्रारम्भ से ही क्षारीय ।
• अन्य लक्षण मृदु रूप में ।
याद रखिये -
• तीव्र मूत्राशय शोथ ( सूजन ) में - मूत्र त्याग हो चुकने के बाद भी पेशाब करने की इच्छा बनी रहती है ।• पीड़ा कुछ समय के लिये शान्त हो जाती है परन्तु पथरी के कारण मूत्राशय शोथ ( सूजन ) में पीड़ा शान्त नहीं होती । ।
रोग की पहिचान -
• रोग निदान में कोई कठिनाई नहीं ।• मूत्राशय शोथ ( सूजन ) में दर्द ऊपर की ओर कमर तक फैल जाता है और ' वृक्क शोथ '( गुर्दे की सूजन ) में दर्द नीचे की ओर कमर से मूत्राशय की ओर फैलता है ।
रोग का परिणाम -
• नया रोग आसानी से ठीक हो जाता है । ।• चिरकालीन ( Countinuing for a long time ) रोग आसानी से ठीक नहीं होता ।
• दुर्बलता तथा सेप्टीसीमिया होने से रोगी की मृत्यु ।
याद रखिये - यदि संक्रमण ‘ यूरेटर्स के द्वारा गुर्दो की ओर न जावे तो रोग बहुत गम्भीर नहीं । परन्तु रोग कष्टदायक एवं पुनरावर्तन ( बार-बार आने वाला ) करने वाला है । यह वस्ती शोथ ( मूत्रथैली सूजन ) का कैंसर हो सकता है तथा ऑपरेशन न करने की स्थिति में घातक सीधे भी हो सकता है।
रोग की चिकित्सा विधि →
• कारण का पता लगा कर उसे दूर करें ।• तीव्र अवस्था में पूर्ण विश्राम । ।
• इस रोग में पेशाब रुक जाने की सम्भावना । अधिक रहती है । पेशाब रुक जाने से , यदि दवा से शीघ्र लाभ न हो तो साफ्ट कैथेटर का प्रयोग करना चाहिये । पर बहुत सावधानी से । किसी तरह की चोट न लग जाये ।
पथ्यापथ्य एवं सहायक चिकित्सा →
• जल , बार्ली ( जौ ) एवं अन्य तरल पदार्थों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें ।• रोगी को मिश्री का पानी , ईसव गोल या तुकमलंगा का भिगोया हुआ पानी , कच्चे नारियल का पानी , छेने का पानी , बराबर की मात्रा में कच्चा दूध और पानी , बरफ आदि सब ठंडे पेय पीने को दें ।
• मूत्राशय के ऊपर सदैव गरम पानी की पट्टी रखनी चाहिये । ।
•• एक्यूट सिस्टाइटिस रोग में - पेशाब की परीक्षा करने पर पेशाब का आपेक्षिक गुरुत्व कम ( पेशाब सामान्य से कम ) , ‘ ऐसिड - रिएक्शन ' , पेशाब में अधिक ‘ म्यूकस ' , पेशाब का रंग बदल जाना आदि लक्षण मिलते हैं ।
•• योनि परीक्षा में – योनि के सामने वाले अंश पर दबाव डालने से किसी प्रकार का दर्द नहीं , पर भीतर छू देने मात्र से जोर का दर्द होता है ।
•• क्रानिक सिस्टाइटिस में - पेशाब का आपेक्षिक गुरुत्व ( पेशाब सामान्य से कम ) कम हो जाता है । पेशाब , ' एल्कलाइन रहता है , पेशाब में हमेशा बदबू रहती है । पेशाब में पीव , एपिथिलियल , फास्फेट्स , एल्बुमेन तथा बैक्टीरिया रहते हैं । स्त्रियों की योनि परीक्षा करने पर - एक्यूट सिस्टाइटिस की भाँति दर्द हो सकता है । मूत्रनली में अंगुली डालने से लाइनिंग मेम्ब्रेन का रूखापन ( Roughness ) स्पष्ट मालूम होता है ।
•• मूत्राशय शोथ की औषधि चिकित्सा -
इस रोग में संक्रमण को दूर करने के लिये ‘ एण्टीबायोटिक्स ' औषधियों , ट्राइमिथोत्रिम( Trimethoprim ) एवं सल्फामीथाक्साजोल ( Sulphamethoxazole ) का प्रयोग करें । दोनों की सम्मिलित टेबलेट ' इन्फैक्ट्रा ( Infactra ) के नाम से मिलती है । साथ ही मूत्र की क्षारीय प्रतिक्रिया बनाये रखने के लिये - ‘ साइट्राल्का ( Citralka PD . Co . ) या अल्कासोलंकी1 - 2 चम्मच दिन में 3 - 4 बार देते रहना चाहिये । पथरी ( Stones ) का निर्माण न हो इसके लिये रोगी को विटामिन ए के कैप्सूल लम्बे समय तक देने आवश्यक होते हैं । साथ में प्रोटार्गोल ( Protargol ) 150 मि . ग्रा . को 30 मि . ली . नार्मल सैलाइन में मिलाकर रोगी के मूत्राशय को धोयें ।•• हरीसन्स प्रिंसिपल ऑफ इन्टरनल मेडिसिन्स के अनुसार →
• सिन्थेटिक पेनिसिलीन ( Synthetic Penicillin )• सल्फोनामाइड्स ( Sulphonamides )
• एम्पीसिलीन ( Ampicillin )
• प्रोटियस इन्फेक्शन के लिये - ' जेण्टामाइसिन , ' केनामाइसिन , एम्पीसिलिन , सेफेलोथिन । ।
• सीडोमोनस इन्फेक्शन के लिये - ' कार्बेनीसिलिन ' , ' जेण्टामाइसिन ' , ' पोली मिक्सिन अथवा ' कोलिस्टिन X7 से 10 दिन तक । ।
• नाइट्रोफ्रान्टोइन 50 - 100 मि . ग्रा . । अथवा - नेलीडिक्सिक एसिड 0 . 5 से 1 . 0 ग्राम । । अथवा सल्फोनामाइड्स 0 . 5 से 1 . 0 ग्राम X सोते समय ।
•• मूत्राशय शोथ में अनुभूत विशिष्ट रोगी व्यवस्था पत्र ••
Rx
• प्रा . सायं - बैक्ट्रिम ( रोशे ) 2 - 2 गोली 7 दिन तक ।
• दिन के 8 बजे , 2 बजे एवं रात 8 बजे - निफ्रोजेसिक ( Nephrogesic )इथनोर 1 - 2 टेबलेट भोजन के तत्काल बाद । ।
• दिन में 3 - 4 बार - अल्कासोल ( Alkasol ) 2 - 2 चम्मच । ।
• दिन में 2 बार 10 बजे , 4 बजे - एम्पीसिलीन ( रोसिलिन ) ' रैनवैक्सी 250 मि . ग्रा . कैप्सूल जल से । ।
• दिन में 2 बार 2 - 3 माह तक - विटामिन ‘ ए कैप्सूल 1 - 1 कै . जल से । ।
• • चिरकारी अवस्था में - ट्राईफ्रान ( Trifuran ) ( M . M . Labs ) 1 कै . रात सोते समय ।
‘ मूत्राशय शोथ की मिश्रित औषधि चिकित्सा -
1 . कैम्पीसिलीन ( कैडिला ) 500 मि . ग्रा . का 1 कैप्सूल , पाइरिडायम ( वार्नर ) 1 टेबलेट , विटामिन ए 1 कै . । ऐसी 1 मात्रा दिन में 2 या 3 बार ।2 . ओरीप्रिम डी . एस . 1 टेबलेट , लेडरमाइसिन 1 कैप्सूल । ऐसी 1 मात्रा दिन में 2 बार । साथ ही प्रोसिलिन का इन्जे , मांस में लगावें ।
3 . ब्राडिसिलीन ( एल्केम ) 1 कै . , पाइरिडैसिल ( एथनोर ) 1 टेबलेट , सीलिन 100 मि . ग्रा . 1 टेबलेट , विटामिन बी कम्पलेक्स 1 टेबलेट । ऐसी 1 मात्रा दिन में 3 बार जल से
मूत्राशय शोथ में सेवन कराने योग्य अपडेट ऐलो . पेटेण्ट टेबलेट -
1 . एजो - विण्टोमाइलोन ( Azo - Winto - mylon ) ( बिन मेडिकेयर ) - 2 गोली प्रति 6 घण्टे पर दिन में 2 - 3 बार दें । तत्पश्चात प्लेन टिकिया । 2 टेबलेट दिन में 4 बार 5 - 7 दिन तक ।2 . निफ्रोजेसिक ( Nephrogesic ) ( इथनोर ) - 2 गोली दिन में 3 - 4 बार भोजन के बाद ।
3 . पैराक्सिन डूगीज ( नोल ) - 1 - 2 ड्रेगी दिन में 2 या 3 बारे ।
4 . यूरोलोमिन ( Urolomin ) ( सिपला ) - 2 टेबलेट दिन में 2 बार भोजन के बाद ।
5 . मेड्रीब्रोन ( Madribon ) नि . ' रोशे कं . - 500 मि . ग्रा . की 1 टे . दिन में 2 - 3 बार ।
6 . फेनोसिन ( Fenocin ) ( फाइजर ) - 1 टेबलेट दिन में 2 - 3 बार ।
7 . फ्यूराडाण्टीन ( Furadantin ) ( स्मिथ ) - 50 मि . ग्रा . की 1 / 2 - 1 / 2 गोली खाने के साथ 4 बार दें ।
8 . यूरोलूकोसील ( Urolucosil ) ( बारनर ) - 500 मि . ग्रा . की 1 - 1 टे . दिन में 4 बार ।
9 . यूरोबाइयोटिक ( Urobiotic ) ( फीजर ) - 1 - 1 कै . दिन में 3 - 4 बार 4 - 6 घंटे पर ।
10 . सेप्ट्रान ( Septran ) ( बरोज वेल्कम ) - 1 - 2 टेबलेट प्रातः सायं दिन में 2 बार ।
11 . सिफ़ान ( Cifran ) ( रैनवैक्सी ) - 250 - 500 मि . ग्रा . की 1 टे . दिन में 2 बार । ।
12 . सिपलोक्स ( Ciplox ) ( सिपला ) - 500 मि . ग्रा , की 1 टे . दिन में 2 - 3 बार ।
13 . ग्रामोनेग ( Gramoneg ) ( रैनवैक्सी ) - 2 टे . दिन में 4 बार कम से कम 7 दिन तक ।
14 . मिण्डेलामीन ( Mindelamine ) ( वार्नर ) - 1 - 1 टे . दिन में 4 बार दें ।
15 . मेफ्टाल - स्पाज ( Meftal - Spas ) ( वार्नर ) - 2 टे . दिन
16 . नेगाडिक्स ( Negadix ) ( C . FL ) - 2 - 2 टे . दिन में 4 बार कम से कम 7 दिन तक ।
17 , नोरबिड ( Norbid ) ( एलेम्बिक ) - 1 टेबलेट दिन में 2 बार 10 - 20 दिन तक ।
18 . नोरफ्लोक्स ( Norflox ) ( सिपला ) - 1 - 2 टेबलेट दिन में 3 बार । ।
19 . यूरोफ्लोक्स ( Uroflox ) ( टोरेण्ट ) 200 , 400 , 800 मि . ग्रा . - 400 मि . ग्रा . टेबलेट दिन में 2 बार 10 - 21 दिन दिन तक
20 . यूरोफ्लूकोसिल ( Uroflucosil ) ( वार्नर ) - 1 टेबलेट दिन में 4 बार 10 दिन तक । ।
2 . ग्रामोनेग ( Grannoneg ) ( रैनवैक्सी ) - 1 - 2 चम्मच दिन में 2 - 3 बार ।
3 . पेराक्सिन ( Paraxin ) ( वोहरिंगर मेनहेम ) - 25 - 50 मि . ग्रा . / किलो शरीर भार पर । विभाजित मात्रा में प्रति 6 घण्टे पर ।
5 . मेड्रीब्रोन ( Madribon ) नि . ' रोशे कं . - 500 मि . ग्रा . की 1 टे . दिन में 2 - 3 बार ।
6 . फेनोसिन ( Fenocin ) ( फाइजर ) - 1 टेबलेट दिन में 2 - 3 बार ।
7 . फ्यूराडाण्टीन ( Furadantin ) ( स्मिथ ) - 50 मि . ग्रा . की 1 / 2 - 1 / 2 गोली खाने के साथ 4 बार दें ।
8 . यूरोलूकोसील ( Urolucosil ) ( बारनर ) - 500 मि . ग्रा . की 1 - 1 टे . दिन में 4 बार ।
9 . यूरोबाइयोटिक ( Urobiotic ) ( फीजर ) - 1 - 1 कै . दिन में 3 - 4 बार 4 - 6 घंटे पर ।
10 . सेप्ट्रान ( Septran ) ( बरोज वेल्कम ) - 1 - 2 टेबलेट प्रातः सायं दिन में 2 बार ।
11 . सिफ़ान ( Cifran ) ( रैनवैक्सी ) - 250 - 500 मि . ग्रा . की 1 टे . दिन में 2 बार । ।
12 . सिपलोक्स ( Ciplox ) ( सिपला ) - 500 मि . ग्रा , की 1 टे . दिन में 2 - 3 बार ।
13 . ग्रामोनेग ( Gramoneg ) ( रैनवैक्सी ) - 2 टे . दिन में 4 बार कम से कम 7 दिन तक ।
14 . मिण्डेलामीन ( Mindelamine ) ( वार्नर ) - 1 - 1 टे . दिन में 4 बार दें ।
15 . मेफ्टाल - स्पाज ( Meftal - Spas ) ( वार्नर ) - 2 टे . दिन
16 . नेगाडिक्स ( Negadix ) ( C . FL ) - 2 - 2 टे . दिन में 4 बार कम से कम 7 दिन तक ।
17 , नोरबिड ( Norbid ) ( एलेम्बिक ) - 1 टेबलेट दिन में 2 बार 10 - 20 दिन तक ।
18 . नोरफ्लोक्स ( Norflox ) ( सिपला ) - 1 - 2 टेबलेट दिन में 3 बार । ।
19 . यूरोफ्लोक्स ( Uroflox ) ( टोरेण्ट ) 200 , 400 , 800 मि . ग्रा . - 400 मि . ग्रा . टेबलेट दिन में 2 बार 10 - 21 दिन दिन तक
20 . यूरोफ्लूकोसिल ( Uroflucosil ) ( वार्नर ) - 1 टेबलेट दिन में 4 बार 10 दिन तक । ।
•• मूत्राशय शोथ में सेवन कराने योग्य पेटेण्ट पेय -
1 . फूराडाण्टिन ( Furadantin ) ( S . K . E ) सस्पेन्सन 50 - 100 मि . ग्रा . टे . - 1 - 2 चम्मच दिन में 2 - 3 बार ।2 . ग्रामोनेग ( Grannoneg ) ( रैनवैक्सी ) - 1 - 2 चम्मच दिन में 2 - 3 बार ।
3 . पेराक्सिन ( Paraxin ) ( वोहरिंगर मेनहेम ) - 25 - 50 मि . ग्रा . / किलो शरीर भार पर । विभाजित मात्रा में प्रति 6 घण्टे पर ।
4 . एम्मोकेट ( Ammoket ) बूट्स - 2 - 3 चम्मच जल के साथ दिन में 3 - 4 बार ।
5 . फ्यूराडाण्टीन ( Furadanten ) ( स्मिथ ) - 1 - 2 चम्मच दिन में 4 बार खाने के साथ ।
6 . यूरोलूकोसील ( Urolucosil ) ( वार्नर ) - 2 - 3 चम्मच दिन में 4 बार ।
7 . सुप्रिस्टोल ( Supristol ) ( जर्मन रेमेडीज ) - बच्चों के रोग में 1 / 2 - 1 चम्मच दिन में 2 बार दें ।
8 . सेप्ट्रान सीरप ( Septran Syrup ) ( B . W ) - 1 / 2 - 1 चम्मच सस्पेन्शन दिन में 2 बार ।
9 . एण्टेरोफ्यूराण्टिन ( Anterofuran tin ) - 2 - 2 चम्मच दिन में 2 - 3 बार 6 - 8 घण्टे पर ।
5 . फ्यूराडाण्टीन ( Furadanten ) ( स्मिथ ) - 1 - 2 चम्मच दिन में 4 बार खाने के साथ ।
6 . यूरोलूकोसील ( Urolucosil ) ( वार्नर ) - 2 - 3 चम्मच दिन में 4 बार ।
7 . सुप्रिस्टोल ( Supristol ) ( जर्मन रेमेडीज ) - बच्चों के रोग में 1 / 2 - 1 चम्मच दिन में 2 बार दें ।
8 . सेप्ट्रान सीरप ( Septran Syrup ) ( B . W ) - 1 / 2 - 1 चम्मच सस्पेन्शन दिन में 2 बार ।
9 . एण्टेरोफ्यूराण्टिन ( Anterofuran tin ) - 2 - 2 चम्मच दिन में 2 - 3 बार 6 - 8 घण्टे पर ।
•• मूत्राशय शोथ ‘ या ’ ‘ वस्ति शोथ ' में लगाने योग्य अपटूडेट ऐलो . पेटेन्ट इन्जे . -
1 . क्रिस्टेलाइन पेनिसिलीन जी सोडियम - 5 लाख यूनिट हर 12 घण्टे पर माँस में लगायें ।2 . सेक्लोपेन ( Seclopen ) ( ग्लैक्सो ) - 1 वायल का इन्जे . माँस में ।
3 . ड्यूपेन ( Dupen ) ( फाइजर कं . ) - 1 / 2 - 1 वायल माँस में नित्य । साथ ही इसी कं , की ' फेनोसिन 1 - 1 टेबलेट दिन में 3 बार दे ,
4 . सेपोरान ( Ceporan ) ( ग्लैक्सो ) - 1 ग्राम के वायल में 2 . 5 से 3 मि . ली . डिस्टिल्ड वाटर में घोल कर कूल्हे के माँस में लगावें ।
5 . डाइकिस्टासीन एस - फोर्ट ( स्क्विब ) - 1 ग्राम की सुई माँस में लगावें । ।
6 . स्टेक्लीन - एस ( स्क्विब ) - 100 मि . ग्रा . ( 1 मि . ली . ) माँस में नित्य लगावें ।
7 . एम्पीसिलीन ( Ampicillin ) - 100 मि . ग्रा . दिन में 2 बार 10 दिन तक ।
8 . जेण्टारिल ( Gentari ) ( एल्केम ) - 5 मि . ग्रा . / किलो / नित्य / 3 बार माँस में ।
5 . डाइकिस्टासीन एस - फोर्ट ( स्क्विब ) - 1 ग्राम की सुई माँस में लगावें । ।
6 . स्टेक्लीन - एस ( स्क्विब ) - 100 मि . ग्रा . ( 1 मि . ली . ) माँस में नित्य लगावें ।
7 . एम्पीसिलीन ( Ampicillin ) - 100 मि . ग्रा . दिन में 2 बार 10 दिन तक ।
8 . जेण्टारिल ( Gentari ) ( एल्केम ) - 5 मि . ग्रा . / किलो / नित्य / 3 बार माँस में ।
•• मूत्राशय शोथ या वस्ति शोथ की लक्षणों के अनुसार चिकित्सा ••
1 . बार - बार के संक्रमण में - ‘ फूराडेण्टिन ( S . K . F ) की 1 टे . दिन में 3 बार भोजन के साथ 3 दिन तक ।2 . चिरकालिक मूत्राशय शोथ - मूत्राशय को रबर की नलिका या कैथेटर से धोना । इसके लिये मूत्राशय में रबर नलिका प्रवेश कर एक्रीफ्लोविन ( 1 : 10 , 000 ) से धोते हैं । धोने के पश्चात रबर की नलिका द्वारा मूत्राशय में आर्जीराल लोशन 5 - 10 % - 5 10 मि . ली . प्रवेश करना चाहिये । ।
3 . नये प्रकार के रोग की चिकित्सा - धोने की आवश्यकता नहीं । ओरियोमाइसीन का 1 - 1 कै . 4 - 4 घण्टे पर दें ।
4 . तीव्र दर्द के साथ रोग होने पर - एनाफोन इन्जे . 3 मि . ली . माँस में अथवा नस में धीरे - धीरे लगावें । साथ में ' सिफ्रान ( रैनवैक्सी ) की 1 - 1 टे . दिन में 2 बार दें ।